Sundarkand: सुंदरकांड और हनुमान चालीसा इस विश्वविद्यालय में अनिवार्य, मिलेगा अध्यात्मिक लाभ

Sundarkand: मां पाटेश्वरी विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही यहां का पाठ्यक्रम भी खास बनाया गया है. अब विद्यार्थी नियमित पढ़ाई के साथ सुंदरकांड और श्री हनुमान चालीसा भी पढ़ेंगे. विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि शिक्षा के साथ-साथ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक समझ भी जरूरी है. प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के बाद इन ग्रंथों को शामिल करने का निर्णय और भी अहम माना जा रहा है.

कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह बताते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएं पहले से ही पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं. अब सुंदरकांड और हनुमान चालीसा को इसलिए जोड़ा गया है क्योंकि इनमें हनुमानजी के समर्पण, शक्ति और आदर्श चरित्र का विस्तार से वर्णन मिलता है. 15 मार्च 2024 को विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया गया था और तभी से लक्ष्य एक ऐसा संस्थान बनाना था जहां ज्ञान के साथ संस्कार भी जुड़े हों.

अवध क्षेत्र की समृद्ध अवधी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए पीजी के हिंदी पाठ्यक्रम में अवधी साहित्य को खास महत्व दिया गया है. कुलपति का कहना है कि विश्वविद्यालय स्थानीय रचनाकारों के योगदान को सामने लाकर उन्हें सम्मान दिलाने की कोशिश कर रहा है. यहां का उद्देश्य सिर्फ डिग्री देना नहीं, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करना भी है.

॥ दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि .
बरनउं रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार .
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर .
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥

राम दूत अतुलित बल धामा .
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी .
कुमति निवार सुमति के संगी ॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा .
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै .
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥

शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन .
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर .
राम काज करिबे को आतुर ॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया .
राम लखन सीता मन बसिया ॥८

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा .
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे .
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥

लाय सजीवन लखन जियाए .
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई .
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं .
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा .
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते .
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना .
राम मिलाय राज पद दीह्ना........

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