हरि-हर मिलन: सनातन एकता का महादर्शन- पौराणिक, दार्शनिक और साहित्यिक प्रमाण |
–कथावाचक पं प्रदीप मिश्रा–
Hari Har Milan 2025 : भारतीय सनातन धर्म की विशालता और समन्वयवादी चेतना का उत्कृष्टतम प्रतीक यदि कोई है तो वह हरि (विष्णु) और हर (शिव) की एकात्मता है. इस मिलन को केवल दो देवताओं का संयोग मानना अपर्याप्त होगा. वास्तव में यह सृष्टि के पालन (सत्) और लय (चित्) के सिद्धांतों का अद्वैतवादी दर्शन है. यह महादर्शन पौराणिक कथाओं, भक्तिकालीन साहित्य और धार्मिक अनुष्ठानों में गहराई से समाया हुआ है. इस हरि-हर मिलन की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति चातुर्मास की अवधि और विशेष रूप से उज्जैन और काशी (वाराणसी) में मनाई जाने वाली बैकुंठ चतुर्दशी की कथाओं में निहित है.
सनातन धर्म की मूल अवधारणा यह है कि परम सत्ता एक (एकम् सत्) है जिसे मनीषी विभिन्न नामों से पुकारते हैं. इसी परम सत्ता की दो प्रमुख अभिव्यक्तियां हैं- विष्णु (संरक्षण और पालनकर्ता) और शिव (संहार और परिवर्तनकर्ता). यह विभाजन कार्य का है, तत्व का नहीं.
भारतीय दर्शन में इन दो स्वरूपों की एकता को ‘हरिहरात्मक’ कहा जाता है. हरिहर एक ही विग्रह के रूप में पूजे जाते हैं. जहां एक ओर विष्णु के शांत, पीताम्बरधारी रूप का तो दूसरी ओर शिव के रौद्र, भस्मधारी रूप का चित्रण होता है. यह स्वरूप स्पष्ट करता है कि जहां सृष्टि के लिए पालन आवश्यक है, वहीं पुराने के संहार और नए के सृजन के लिए परिवर्तन (शिव तत्व) भी उतना ही अनिवार्य है. यह द्वैत कार्य-कारण का है,........